jimmedari - 1 in Hindi Short Stories by VANDANA VANI SINGH books and stories PDF | जिम्मेदारी - 1

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जिम्मेदारी - 1

वो दिन बड़े अच्छे से याद है,जब एक छोटी सी लड़की (जिसकी उम्र पेंद्रह साल उम्र के हिसाब से ही उसके अंगों की बनावट , गोरा रंग जैसे दूध चंदन से नहलाई जाती नहलाई जाती हो और छोटे बाल उसके गालों को ऐसे चिपके हुए जैसे लताए पेड़ से लिपटी हुई होती है) कम शब्दों में गुडया कह सकते है जिसने बस अभी गुडिया खेलना बंद किया है । सुंदरता के हिसाब का नाम भी मधू और मधु की तरह मीठी आवाज, उन दिनों मधूअपनी मां के करीब जाकर बस यही सोचती उसकी मां कभी ठीक हो जायेगी और वह उसे सारी परेशानियों को बताएगी जो उसे मां के बीमार हो जाने से हो रही थी। मधु ये लगता ऐसी कोई बिमारी नहीं जिसे ऊपर वाला ठीक नहीं कर सकता , उसे बहुत भरोसा सा था, भगवान् पर। उसकी आस्था और ये भरोसा सबको बहुत अच्छा लगने लगा था ।
मधु पूरा दिन जो काम हो वो करके अपने मा के पास रहती क्यों की उन दिनों स्कूल बंद होने की वजह से मधु को काफी टाइम मिल जाता था, मधु पड़ने में ज्यादा रुचि रखने वाली बच्ची है ,जब तक उसकी मा ठीक थी,मधु को और कोई कम से मतलब भी नहीं रहता उसको स्कूल से आकर अपने काम करने और फिर पढ़ने लगना। ये सब उसकी मा को भी अच्छा लगता था , की मधु कुछ कर ले ये सबकी इच्छा थी । लेकिन समय प्रवर्तित हुआ और उसकी मा की तबीयत खराब होने की वजह से सारी जिम्मेदारी उसी को देखनी थी । मधु ने सारी जिम्मेदारी जैसे खुद समझ ली हो आज वही मधु जो किसी से बात करना ठीक नहीं समझती थी आज घर आए सारे मेहमान की मेहाननवाजी में कोई कमी नहीं रख रही थी ।ये बात सबको चोका देने के लिए कम नहीं थी क्यों की मधु को उन दिनों भोजन बनाना भी नहीं आता था। सारा कुछ जैसे उसे वरदान में मिला हो। मधु की मा को ये देख की मधु अपना सारा काम जिम्मेदारी से करती है ले किन वह बिचारी अपनी बिमारी के कारण उसे थोड़ा भी लाड ना कर पाती , कभी कोई काम बिगड़ जाने पर उसे गुस्सा करती । मधु मा को खाना खिलाती और दवाई भी , मा के पास दूसरे बिस्तर पर सोती कोई काम मा को लगेगा तो मधु उनकी बात आसानी से सुन पाएगी। इसी दिन गुजरते गए हर रोज इक नई उम्मीद निराशा से भरी आती जो लोग देखने के लिए मा को आते वो लोग कहते कि बहुत लोग ठीक हुए है। निराशा तब उत्पन होती जब उनमें से कोई ये कह देता बिमारी बड़ी है ।।
मधु की मां की तबीयत कुछ इस तरह से बिगड़ रही थी ,एक दिन जैसे रेत की तरह हाथो से फिसलती जा रही हो । किसी को क्या पता कि उसकी मा पर क्या गुजर रही है जो भी आता ये कहता आप ठीक हो जायेंगी लेकिन सुमन को तो हकीकत पता थी सारा कुछ अच्छे से जानती थी । अपने सही पहचाना सुमन मतलब मधु की मा , सुमन भी अच्छी महिला थी जो भी उनसे मिलता वो प्रभावित होता ।
पड़ी लिखी होने के कारण भी मधु की मा क्यों नहीं जान पाती की उसको इस बिमारी ने कब घेर लिया।।।